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BAHADUR RAJKUMAR- HINDI KAHANI ||बहादुर राजकुमार| |
Hindi kahani
बहादुर राजकुमार
एक था साधु, वह अपनी सिद्धि के लिए नर-बलि देता था। इसके लिए वह सुन्दर राजकुमार चुनता था। एक बार घूमते फिरते वह एक दूसरे राज्य में पहुँच गया। वहाँ के राजा की सात रानियाँ थी, परन्तु किसी से भी कोई संतान न थी। साधु ने दो फल उस राजा को दे दिए। उसने राजा से कहा- ‘‘राजन्! ये दोनों फल सातों रानियों में बाँट दो। उनके यहाँ अवश्य बेटे जन्म लेंगे‘‘ हाँ, एक शर्त है कि सबसे बड़ा लड़का तुम्हें मुझे देना होगा। राजा ने साधु की बात मान ली। साधु आशीर्वाद देकर चला गया। राजा ने साधु के आदेश के अनुसार छः रानियों में तो वे फल बाँट दिए, परन्तु सातवीं छोटी रानी को कुछ न भेजा। वह रानी राजा को अच्छी नहीं लगती थी। बाकी छहों से उसे बहुत स्नेह था।
इधर छोटी रानी को भी किसी तरह से इस बात का पता चल गया। उसने एक बिल्ली पाल रखी थी। बिल्ली बहुत समझदार थी और रानी के संकेतों को समझती थी। छोटी रानी ने अपनी बिल्ली को बहुत सिखाकर भेजा। बिल्ली दूसरी छहों रानियों के महलों में गई और उनके द्वार के बाहर फलों के जो छिलके पड़े हुए थे वे सब समेटकर छोटी रानी के पास ले आई। रानी ने उन छिलकों को अच्छी तरह से धोया और तीन बराबर भागकर लिए। एक भाग स्वयं छोटी रानी ने खा लिया, दूसरा उसने बिल्ली को दे दिया और तीसरा भाग घोड़ी को खिला दिया।
नौ महीने के बाद छहों बड़ी रानियों के यहाँ एक-एक बेटा हुआ पर सातवीं छोटी रानी के यहाँ दो पुत्रों ने जन्म लिया। बड़ी छहों रानियों के बेटे कुरूप थे। सातवीं रानी के दोनों पुत्र अत्यन्त सुन्दर थे। घोड़ी और बिल्ली के यहाँ भी दो-दो बेटों ने जन्म लिया।
इतने में वह साधु भी राजा के यहाँ आ पहुँचा। राजा ने अपने वचन के अनुसार बड़ा लड़का साधु के हवाले किया। साधु लड़के को लेकर ऐेसे स्थान पर पहुँचा जहाँ दो रास्ते निकलते थे। साधु ने लड़के से कहा- ‘‘देखों लड़के, मेरे स्थान को ये दो रास्ते जाते हैं एक छः दिन का रास्ता है पर बहुत ही भयानक और दूसरा रास्ता छः महीने का है पर है बड़ा सुखदायक। कहो, किस रास्ते से चलोगे?’’ लड़के ने उत्तर दिया- ‘‘छः महीने वाले से।’’
साधु को बड़ा क्रोध आया। उसने लड़के को कसकर थप्पड़ मारा और उसकी नाक काटकर छुट्टी दे दी। लड़का रोता चिल्लाता महल में लोट आया। उसने सारा हाल अपने पिता को कहकर सुनाया। इतने में साधु भी आ धमका। उसने राजा को शाप का भय दिखाकर कहा कि उसे बड़ा राजकुमार क्यों नहीं दिया गया। राजा ने प्रार्थना की महात्मा जी! आपको बड़ा राजकुमार ही दिया गया था। साधु ने उत्तर दिया- ‘‘नहीं राजन्, वह आपका बड़ा लड़का नहीं है।’’
तब राजा ने बारी-बारी छहोें बड़ी रानियों के छः बड़े लड़के भेंट किए। साधु ने उन सबके कान और नाक काटकर वापस भेज दिए! महल में हा-हाकार मच गया। उधर साधु फिर आ गया। उसके क्रोध की सीमा न थी। उसने कड़ककर राजा से कहा- ‘‘राजन्! तुम मुझे अपने वचन के अनुसार अपना बड़ा लड़का क्यों नहीं सौंपते?’’ यदि मेेरे संग फरेब किया तो मैं तुम्हारे राज्य को नष्ट कर दूँंगा।
राजा बहुत घबराया। अब उसके यहाँ और कौन सा बेटा है? उसकी समझ में नहीं आ रहा था। अंत में पता चला कि उसकी छोटी सातवीं रानी के यहाँ भी दो लड़कों ने जन्म लिया था। राजा छोटी रानी के पास गया। रानी ने अपना बड़ा बेटा राजा को दे दिया और राजा ने उसे साधु के आगे भेंट कर दिया।
छोटी रानी के बड़े लड़के ने अपना घोड़ा और बिल्ली का बच्चा भी साथ ले लिया। साधु उस लड़के की शक्ल सूरत देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और प्रसन्न हो भी क्यों नहीं? वह लड़का बहुत शानदार तथा सुन्दर था।
जब साधु उसी स्थान पर पहुँचा जहाँ से दो रास्ते कटते थे तो साधु ने कहा- ‘देखो! ये दो रास्ते मेेरे स्थान को जाते हैं। एक छः महीने का रास्ता है, पर बहुत सुगम और दूसरा छः दिन का पर है बहुत दुर्गम और जान जोखिम का। कहो, किस रास्ते से चलोगे?’’
राजकुमार ने कहा- ‘‘छः दिन वाले रास्ते से।’’ साधु बहुत प्रसन्न हुआ। राजकुमार ने अपने घोड़े से कहा-
‘‘चल मेरे घोड़े सरपट चाल।
तुझको रोक सके ना काल।।
सीधा साधु के डेरे पर चल।
वहीं पहुँच के पीना है जल।।’’
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BAHADUR RAJKUMAR- HINDI KAHANI ||बहादुर राजकुमार| |
घोड़ा हवा में उड़ चला और छः दिन के स्थान पर दो ही दिन में साधु के डेरे पर पहुँच गया। साधु बेचारा पीछे ही रह गया। राजकुमार आश्रम में पहुँचकर उसके कोने-कोने की जाँच करने लगा। एक कोठरी में पहुँचकर राजकुमार ने आश्चर्य से देखा, वहाँ मानव सिरों का ढेर लगा है। राजकुमार को देखते ही वे सिर पहले तो खिलखिला कर हँस पड़े, फिर रोने लग गए।
राजकुमार ने उन बेधड़ सिरों के हँसने और रोने का कारण पूछा। उन्होंने उत्तर दिया- ‘‘हँसे तो इसलिए कि हमें जाने कितने समय के पश्चात् आज जीवित मनुष्य के दर्शन हुए हैं और रोए इसलिए है कि कल तुम्हारी भी यही हालत होगी, जो हमारी हुई है।’’
राजकुमार कुछ डर गया। उसने उनसे पूछा- ‘‘फिर मुझे क्या करना चाहिए?’’ उन सिरों ने उत्तर दिया- ‘‘साथ ही की कोठरी में एक बहुत बड़ी कढ़ाही में तेल उबल रहा है। इस आश्रम का साधु तुम्हें उस कढ़ाही के गिर्द चक्कर काटने को कहेगा। इसके बाद तुम्हें सिर झुकाकर प्रणाम करने को कहेगा। परन्तु तुम न तो कढ़ाही के गिर्द चक्कर काटना, न प्रणाम के लिए सिर झुकाना।’’ अपितु साधु से यह कहना कि पहले वह तुम्हें चक्कर काटने और सिर झुकाकर प्रणाम करने की रीति सिखाए। इस प्रकार तुम्हारें कहने पर जब साधु चक्कर काटकर और सिर झुकाकर प्रणाम की रीति सिखाएगा तो उस समय तुम तत्काल तलवार से उसका सिर काट डालना, फिर उसको तेल की कढ़ाही में डाल देना।
राजकुमार ने सारी बातों को ध्यान से सुना और उस दुष्ट साधु को ठिकाने लगाने का दृढ़ संकल्प कर लिया। छः दिन पश्चात् साधु भी अपने आश्रम में पहुँच गया। साधु ने राजकुमार को स्नान कराया और स्वयं भी किया। इसके बाद वह अति भयानक रूप धारण करके आया और राजकुमार को उस कोठरी में ले गया, जहाँ कढ़ाही में तेल उबल रहा था। साधु ने राजकुमार से कहा- ‘‘राजकुमार! इस कढ़ाही की प्रदक्षिणा करो और सिर झुकाकर प्रणाम करो।’’
राजकुमार ने उत्तर दिया- ‘‘महात्मा जी! मैंने कभी ऐसा किया नहीं, इसलिए पहले आप करके दिखा दे फिर मैं उसी के अनुसार प्रदक्षिणा आदि करूँगा।’’ साधु झांसे में आ गया। उसने प्रदक्षिणा करके हाथ जोड़कर प्रणाम के लिए जब सिर झुकाया तो राजकुमार ने तलवार से उसका सिर काट दिया। परन्तु उसने देखा कि साधु का सिर फिर धड़ से जुड़ने लगा है। राजकुमार ने फिर तलवार चलाई। सिर धड़ से अलग होकर फिर जुड़ गया। तीन चार बार जब इसी तरह हुआ तो राजकुमार के कानों में आवाज आई। राजकुमार! घबराओ नहीं। एक हाथ से साधु की गर्दन पर तलवार चलाओ और दूसरे हाथ से उस भ्रमर को दबोचकर मसल दो, जो साधु के ऊपर उड़ रहा है। साधु के प्राण इस भ्रमर में टिके हुए हैं।
अब राज कुमार ने ऐसा ही किया साधु बिलकुल ठण्डा हो गया। राजकुमार ने उसे उबलते हुए तेल में डाल दिया। इस प्रकार राजकुमार ने उस जालिम साधु का नामोनिशान तक मिटा दिया। तब तक उस कोठरी में गया जहाँ बेधड़ मानव के सिर पड़े हुए थे। उन सिरों ने राजकुमार को पहाड़ी में एक गुप्त अमृत निर्झर का पता बताया। राजकुमार ने वहाँ से अमृत जल लाकर उन सिरोें पर छिड़का। वे सब पूरे मनुष्य बनकर जी उठे। उन्होंने राजकुमार को प्रणाम किया और अपना राजा बनाने की इच्छा प्रकट की। परन्तु राजकुमार ने कहा कि अपने ही में से किसी को अपना राजा चुन लें, क्योंकि उसे अब अपने घर लौट जाना है।
मार्ग मेें उसे एक बहुत ही सुन्दर महल दिखाई दिया। पर महल को कोई दरवाजा ही नहीं दिखाई पड़ता था। भीतर से भी सूनसान जान पड़ता था। राजकुमार दीवारों में कीले गाड़कर उसे फाँदकर भीतर दाखिल हो गया। सारा महल छान मारा, उसे कोई मानव दिखाई न दिया। अंत में वह एक अत्यन्त सुन्दर कमरे में पहुँचा। उसने देखा वहाँ एक अनूप रूपवती राजकुमारी सोई पड़ी है। उसने राजकुमारी को जंगाने की चेष्टा की, परन्तु वह न जागी। वास्तव में वह राजकुमारी किसी जादू के कारण छः महीने लगातार सोया करती थी और फिर छः महीने जागती रहती थी।
HINDI KAHANIYA
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BAHADUR RAJKUMAR- HINDI KAHANI ||बहादुर राजकुमार| |
खैर, राजकुमार ने अपने हाथ की अंगूठी उतारकर उसकी उंगली में पहना दी और उसकी उंगली से अंगूठी उतार अपनी उंगली में पहन ली। इस प्रकार उसने राजकुमारी से विवाह कर लिया। इसके पश्चात् राजकुमार ने एक पत्र में इस विवाह का हाल तथा अपना पूरा नाम धाम लिखकर अनुरोध किया कि जागते ही लौट आए। यह पत्र राजकुमारी के सिरहाने के नीचे रखकर राजकुमार उस महल से बाहर निकल आया। बाहर उसका घोड़ा और बिल्ली का बच्चा उसकी प्रतिक्षा कर रहे थे। राजकुमार अपने घोड़े पर सवार हुआ और अपने घर की ओर बढ़ चला। थोड़ी ही दूर गया होगा कि उसे एक जादूगरनी औरत मिल गई। यह वही औरत थी, जिसने उस बंद महलवाली राजकुमारी पर अपना जाूद कर रखा था। उसी जादू से राजकुमारी कही आ जा नहीं सकती थी। उस जादूगरनी ने राजकुमार से चिकनी चुपड़ी बाते की। उसे अपने बहुत ही शानदार भवन में ले गई। वहाँ उसने राजकुमार से जुआ खेलना आरम्भ कर दिया। राजकुमार जुए में हार गया। जादूगरनी ने उसे कैदखाने मेें डाल दिया क्योंकि जादूगरनी की शर्त होती थी कि जुए में उससे जो हार जाएगा उसे वह कैदखाने में डाल देगी तथा जो उससे जीत जाएगा तो उसे छोड़ दिया जाता था। फिर क्या हुआ?
क्या राजकुमार अन्त में मर गया?
क्या राजकुमार जादूगरनी की कैदखानेे से आजाद होने में सफल रहा?
क्या सोई हुई राजकुमारी जाग पाई?
कहीं जादूगरनी ने राजकुमार को पत्थर तो नहीं बना दिया?
क्या उस डायन जादूगरनी को कोई जुए में हरा पाया?
फिर अगली कड़ी में प्लीज कमेन्ट।
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